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अधिकतर घरों में बच्चे यह दो प्रश्न अवश्य पूछते हैं जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है? राम और सीता की पूजा क्यों नही? दूसरा यह कि दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों होती है, विष्णु भगवान की क्यों नहीं? इन प्रश्नों का उत्तर अधिकांशतः बच्चों को नहीं मिल पाता और जो मिलता है उससे बच्चे संतुष्ट नहीं हो पाते।आज की शब्दावली के अनुसार कुछ ‘लिबरर्ल्स लोग’ युवाओं और बच्चों के मस्तिष्क में यह प्रश्न डाल रहें हैं कि लक्ष्मी पूजन का औचित्य क्या है, जबकि दीपावली का उत्सव राम से जुड़ा हुआ है। कुल मिलाकर वह बच्चों का ब्रेनवॉश कर रहे हैं कि सनातन धर्म और सनातन त्यौहारों का आपस में कोई तारतम्य नहीं है।सनातन धर्म बेकार है।आप अपने बच्चों को इन प्रश्नों के सही उत्तर बतायें। दीपावली का उत्सव दो युग, सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मीजी का पूजन होता है। भगवान राम भी त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने घर घर दीपमाला जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए इसका नाम दीपावली है।अत: इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है दूजा दीपावली जो त्रेता युग प्रभु राम और दीपों से जुड़ा है। लक्ष्मी गणेश का आपस में क्या रिश्ता है और दीवाली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है? लक्ष्मी जी सागरमन्थन में मिलीं, भगवान विष्णु ने उनसे विवाह किया और उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया। लक्ष्मी जी ने धन बाँटने के लिए कुबेर को अपने साथ रखा। कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते ही नहीं थे।वे खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। माता लक्ष्मी खिन्न हो गईं, उनकी सन्तानों को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने कहा कि तुम कुबेर के स्थान पर किसी अन्य को धन बाँटने का काम सौंप दो। माँ लक्ष्मी बोली कि यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा। तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को भी कुबेर के साथ बैठा दिया। गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान। वे बोले, माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊँगा , उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी।अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न, रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे।कुबेर भंडारी देखते रह गए, गणेश जी कुबेर के भंडार का द्वार खोलने वाले बन गए। गणेश जी की भक्तों के प्रति ममता कृपा देख माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें। दीवाली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में।इसलिए वे अपने सँग ले आती हैं अपने मानस पुत्र गणेश जी को। इसलिए दीवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है। यह कैसी विडंबना है कि देश और हिंदुओ के सबसे बड़े त्यौहार का पाठ्यक्रम में कोई विस्तृत वर्णन नही है और जो वर्णन है वह अधूरा है।इस लेख को पढ़ कर स्वयं भी लाभान्वित हों और अपनी अगली पीढ़ी को भी बतायें। दूसरों के साथ साझा करना भी ना भूलेंI 🌹🌻🌹🌻🌹🌻🪷💕🩷💝💝❤‍🔥💖❣️💞🪯👩‍❤️‍👨Ⓜ️♏🕉️🕉️🕉️🕉️🙏🙏🙏🙏🙏🙏

 अधिकतर घरों में बच्चे यह दो प्रश्न अवश्य पूछते हैं जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है? राम और सीता की पूजा क्यों नही? 

दूसरा यह कि दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों होती है, विष्णु भगवान की क्यों नहीं?


इन प्रश्नों का उत्तर अधिकांशतः बच्चों को नहीं मिल पाता और जो मिलता है उससे बच्चे संतुष्ट नहीं हो पाते।आज की शब्दावली के अनुसार कुछ ‘लिबरर्ल्स लोग’  युवाओं और बच्चों के मस्तिष्क में यह प्रश्न डाल रहें हैं कि लक्ष्मी पूजन का औचित्य क्या है, जबकि दीपावली का उत्सव राम से जुड़ा हुआ है। कुल मिलाकर वह बच्चों का ब्रेनवॉश कर रहे हैं कि सनातन धर्म और सनातन त्यौहारों का आपस में कोई तारतम्य नहीं है।सनातन धर्म बेकार है।आप अपने बच्चों को इन प्रश्नों के सही उत्तर बतायें।


दीपावली का उत्सव दो युग, सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मीजी का पूजन होता है। भगवान राम भी त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने घर घर दीपमाला जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए इसका नाम दीपावली है।अत: इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है दूजा दीपावली जो त्रेता युग प्रभु राम और दीपों से जुड़ा है।


लक्ष्मी गणेश का आपस में क्या रिश्ता है

और दीवाली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है?


लक्ष्मी जी सागरमन्थन में मिलीं, भगवान विष्णु ने उनसे विवाह किया और उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया। लक्ष्मी जी ने धन बाँटने के लिए कुबेर को अपने साथ रखा। कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते ही नहीं थे।वे खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। माता लक्ष्मी खिन्न हो गईं, उनकी सन्तानों को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने कहा कि तुम कुबेर के स्थान पर किसी अन्य को धन बाँटने का काम सौंप दो। माँ लक्ष्मी बोली कि यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा।

तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की  विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को भी कुबेर के साथ बैठा दिया। गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान। वे बोले, माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊँगा , उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी।अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न, रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे।कुबेर भंडारी देखते रह गए, गणेश जी कुबेर के भंडार का द्वार खोलने वाले बन गए। गणेश जी की भक्तों के प्रति ममता कृपा देख माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें।


दीवाली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में।इसलिए वे अपने सँग ले आती हैं अपने मानस पुत्र गणेश जी को।

इसलिए दीवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है।


यह कैसी विडंबना है कि देश और हिंदुओ के सबसे बड़े त्यौहार का पाठ्यक्रम में कोई विस्तृत वर्णन नही है और जो वर्णन है वह अधूरा है।इस लेख को पढ़ कर स्वयं भी लाभान्वित हों और अपनी अगली पीढ़ी को भी बतायें। दूसरों के साथ साझा करना भी ना भूलेंI

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अच्छा, यहाँ आपके लिए एक मज़ेदार जोक है: टीचर: "न्यूटन का नियम बताओ।" छात्र: "सर, न्यूटन का नियम यह है कि... अगर क्लास में टीचर हों तो बच्चे शांत रहते हैं, और जैसे ही,हाँ, बिल्कुल! यहाँ आपके लिए एक और जोक है: टीचर (छात्र से): "बताओ, दुनिया में सबसे ज़्यादा तेज़ी से क्या फैलता है?" छात्र: "सर, ख़बर!" टीचर: "शाबाश! कोई उदाहरण दो।" छात्र: "जब मैं सुबह स्कूल जाने के लिए लेट होता हूँ, तो ये ख़बर पूरे मोहल्ले में मुझसे पहले पहुँच जाती है कि 'आज फिर देर हो गई!'" टीचर बाहर जाते हैं, बच्चे उछलना-कूदना शुरू कर देते हैं।" टीचर: "तुम्हारा मतलब?" छात्र: "मतलब, जब तक कोई बाहरी बल (टीचर) न लगाया जाए, तब तक वस्तु (बच्चे) अपनी विरामावस्था या एकसमान गति की अवस्था में ही रहती है!"

हाँ, बिल्कुल! यहाँ आपके लिए एक और जोक है:


टीचर (छात्र से): "बताओ, दुनिया में सबसे ज़्यादा तेज़ी से क्या फैलता है?" छात्र: "सर, ख़बर!" टीचर: "शाबाश! कोई उदाहरण दो।" छात्र: "जब मैं सुबह स्कूल जाने के लिए लेट होता हूँ, तो ये ख़बर पूरे मोहल्ले में मुझसे पहले पहुँच जाती है कि 'आज फिर देर हो गई!'"

अच्छा, यहाँ आपके लिए एक मज़ेदार जोक है:

टीचर: "न्यूटन का नियम बताओ।" छात्र: "सर, न्यूटन का नियम यह है कि... अगर क्लास में टीचर हों तो बच्चे शांत रहते हैं, और जैसे ही टीचर बाहर जाते हैं, बच्चे उछलना-कूदना शुरू कर देते हैं।" टीचर: "तुम्हारा मतलब?" छात्र: "मतलब, जब तक कोई बाहरी बल (टीचर) न लगाया जाए, तब तक वस्तु (बच्चे) अपनी विरामावस्था या एकसमान गति की अवस्था में ही रहती है!"

 
























टीचर- इतने दिन कहां थे, स्कूल क्यों नहीं आए? गोलू- बर्ड फ्लू हो गया था मैम। टीचर- पर ये तो पक्षियों को होता है इंसानों को नहीं। गोलू- इंसान समझा ही कहां आपने...रोज तो मुर्गा बना देती हो..!!

 

😂🤣😂🤣टीचर- इतने दिन कहां थे, स्कूल क्यों नहीं आए?

गोलू- बर्ड फ्लू हो गया था मैम।

टीचर- पर ये तो पक्षियों को होता है इंसानों को नहीं।

गोलू- इंसान समझा ही कहां आपने...रोज तो मुर्गा बना देती हो..!!










Pappu yaar main jo bhi kam karta hun Meri bhi bich Mein Jaati Hai kam ka to truck chalane ka

                  
 

*फ्री में क्यों* *चूहा* पिंजरे में इसलिए *फंसता* है क्योंकि वो समझ नहीं पाता है कि *पिंजरे में रखी रो

 *फ्री में क्यों*


*चूहा* पिंजरे में इसलिए *फंसता* है क्योंकि वो समझ नहीं पाता है कि *

पिंजरे में रखी रोटी* उसे *फ्री में क्यों* दी जा रही है।

आप कितने भी अच्छे हो.. कितना भी अच्छा काम कर लो.. एक बात हमेशा याद रखना.. जो ग़लत समझता है.. *मरते दम तक ग़लत ही समझेगा..* क्योंकि नज़र का ऑपरेशन


 

जिसका भी भाव बढ़ जाये उसे त्याग दो चाहे वो


 

*इतना कमजोर किरदार नहीं है हमारा,* *कि वफ़ादार होने की सफाई देते फिरें,* *हमें यकीन है अपने किरदार पर,*

 


खुद की औकात होगी तो दुनिया कद्र करेगी किसी के दाएं बाएं खड़े होने से किरदार ऊंचे नहीं होते..

 खुद की औकात होगी तो

दुनिया कद्र करेगी

किसी के दाएं बाएं खड़े होने से

किरदार ऊंचे नहीं होते..

*माना की तकलीफे दिल दुखाती हैं पर बहुत कुछ सिखाती भी हैं*

 


बहुत बढ़िया! चलिए अब उसी थीम पर एक छोटी कहानी सुनाता हूँ — शीर्षक रहेगा "अपनों की परछाइयाँ"। कहानी में दर्द, भरोसा, और अंत में आत्म-ज्ञान की एक झलक होगी।

अपनों की परछाइयाँ राहुल एक आम इंसान था — दिल से सीधा, भरोसे से भरा, और अपनों के लिए कुछ भी कर गुजरने वाला। ज़िंदगी ने जब-जब उसे मोड़ा, उसने बस एक बात सीखी थी — “अपनों का साथ सबसे बड़ी ताक़त होता है।” उसके तीन सबसे करीबी दोस्त थे: अमित, विशाल और नीरज। स्कूल से लेकर नौकरी तक, हर मोड़ पर चारों एक-दूसरे के साथ थे। राहुल की ज़िंदगी में जब तरक्की आई, तो उसने अपने दोस्तों को भी साथ उठाया — किसी को नौकरी दिलवाई, किसी की बिज़नेस में मदद की। लेकिन वक़्त का खेल अजीब होता है। एक दिन, राहुल के ऊपर झूठा केस बनाकर उसकी कंपनी में छापेमारी हुई। उसी वक्त उसे पता चला — शिकायत किसी अजनबी की नहीं थी, बल्कि उसी के दोस्तों की थी। उन्होंने मिलकर उसकी पीठ में छुरा घोंपा… पैसे और जलन की आग में। राहुल टूट गया। वो पहाड़-सा इंसान, जो कभी दूसरों का सहारा था, अब खुद अकेला रह गया। हर आवाज़, हर चेहरा उसे चुभता था। कई दिन वो कमरे में बंद रहा, सिर्फ एक सवाल के साथ — "मैंने उनका क्या बिगाड़ा था?" मगर फिर एक शाम, जब सूरज ढल रहा था, उसने खुद से कहा — "शायद मैं ही ग़लत था… जो हर अपने को आईना समझता रहा।" वो उठा, खुद को साफ़ किया, और एक डायरी खोली — पहला वाक्य लिखा: "अब अपनों की परछाइयों से दोस्ती नहीं रखनी..." उस दिन से राहुल ने सीखा कि रिश्ते निभाओ, लेकिन आँखें बंद करके नहीं। और सबसे ज़रूरी बात — अगर कोई तुम्हें लूटे, तो उसे दोष मत दो... बस खुद को इतना मजबूत बनाओ कि अगली बार कोई हिम्मत न करे।

बहुत खूब! चलिए, उसी भाव पर एक पूरी कविता पेश करता हूँ — दर्द, विश्वासघात और आत्म-संवेदना से भरी हुई। शीर्षक रखते हैं: "मुझे लूटा अपनों ने"

मुझे लूटा अपनों ने मुझे लूटा अपनों ने, जख़्म अजनबी क्या देते, हमदर्द बनकर छिप-छिप के वार वही कर देते। जिनके लिए हर मोड़ पे मैं दीवार बना, वो ही मेरे साये से भी किनारा कर गए। जिसे समझा था अपना, वो किरदार बदल गया, हँसी बाँटने वाला, अब खंजर सँभाल गया। हर मोड़ पर वक़्त ने ये एहसास दिलाया, दुश्मन से ज़्यादा ज़हर, अपनों ने पिलाया। मैं गिरा तो हाथ बढ़ाने कोई न आया, जो पास थे, सबने मुँह फेर लिया, हँस आया। अब तन्हा हूँ, पर चैन है इस खामोशी में, कम से कम ज़हर नहीं, है सुकून इस रोशनी में। "अब किसी से गिला नहीं, शिकवा नहीं किसी बात का, जो खोया वो सबक था, जो बचा है वो मेरा साथ है।"

किसी को दुःख देने से पहले ये जरूर सोच लेना की उसके आँसूं आपके लिए सजा बन सकते हैं।

kisee ko dukh dene se pahale ye jaroor sochie usakee aankhen aapake lie saja ban sakatee hain.

बिलकुल सही कहा आपने।

"किसी को दुःख देने से पहले ये जरूर सोच लेना
कि उसके आँसू एक दिन तुम्हारे कर्मों की सजा बन सकते हैं।"

आँसू जब दिल से निकलते हैं, तो ऊपर वाला भी खामोश नहीं रहता।
हर रिश्ता, हर भावना की एक हद होती है — और जब वो टूटती है, तो उसकी गूंज दूर तक जाती है।

आपका ये विचार बहुत गहरा है। क्या आप इसे किसी शायरी, कविता, या कहानी का हिस्सा बना रहे हैं?

 

*श्रीमतीजी की उंगली पर खून देख*😭🥳 पति महाशय ने तुरंत *ख़ून चूसकर उंगली* पर फूंक मारी।💘💕 *श्रीमतीजी प्यार भरे लहजे* में बोली आप भी ना, ऐसा क्यूं करते हो? *मैंने तो गद्दे पर बैठे खटमल को मारा था!!* 😀 *मोरल ऑफ द स्टोरी**प्यार और राजनीति में अंधे मत बनिये, उचित निर्णय ही लें, काबिल हों उसी को वोट दें ll🤪

 *श्रीमतीजी की उंगली पर खून देख*😭🥳 पति महाशय ने तुरंत *ख़ून चूसकर उंगली* पर फूंक मारी।💘💕


*श्रीमतीजी प्यार भरे लहजे* में बोली आप भी ना, ऐसा क्यूं करते हो? *मैंने तो गद्दे पर बैठे खटमल को मारा था!!* 😀


*मोरल ऑफ द स्टोरी**प्यार और राजनीति में अंधे मत बनिये, उचित निर्णय ही लें, काबिल हों उसी को  वोट दें ll🤪






ज्ञान धन से उत्तम है, धन की तो तुम्हें रक्षा करनी पड़ती है पर ज्ञान स्वयं तुम्हारी रक्षा करता है।

 ज्ञान धन से उत्तम है, धन की तो तुम्हें रक्षा करनी पड़ती है पर ज्ञान स्वयं तुम्हारी रक्षा करता है।

Knowledge is better than wealth, you have to protect wealth but knowledge itself protects you.

ऐ ज़िन्दगी, 🌥 तोड़ कर हमको ऐसे बिखेर दे इस बार, 🌈 न फिर से टूट पायें हम, 😎 और न फिर से जुड़ पाए तू। ☀️😎🌼👌 नजरिया बदल के देख, 💐 हर तरफ नजराने मिलेंगे, ☀️ ऐ ज़िन्दगी यहाँ तेरी तकलीफों के भी दीवाने मिलेंगे। 😎🌷🙈😎 जब भी सुलझाना चाहा ज़िन्दगी के सवालों को मैंने, 🌼 हर एक सवाल में ज़िन्दगी मेरी उलझती चली गई। 🌺🙈🌈👌 यूँ ही खत्म हो जायेगा जाम की तरह जिन्दगी का सफ़र, ☀️ कड़वा ही सही एक बार तो नशे में होकर पिया जाये। 🙈🌼🌷🌷 पानी फेर दो इन पन्नों पर ताकि धुल जाए स्याही सारी, 💐 ज़िन्दगी फिर से लिखने का मन होता है कभी-कभी। 🙌🌥🤐🌼

 ऐ ज़िन्दगी, 🌥 तोड़ कर हमको ऐसे बिखेर दे इस बार, 🌈

न फिर से टूट पायें हम, 😎 और न फिर से जुड़ पाए तू। ☀️😎🌼👌

नजरिया बदल के देख, 💐 हर तरफ नजराने मिलेंगे, ☀️

ऐ ज़िन्दगी यहाँ तेरी तकलीफों के भी दीवाने मिलेंगे। 😎🌷🙈😎

जब भी सुलझाना चाहा ज़िन्दगी के सवालों को मैंने, 🌼

हर एक सवाल में ज़िन्दगी मेरी उलझती चली गई। 🌺🙈🌈👌

यूँ ही खत्म हो जायेगा जाम की तरह जिन्दगी का सफ़र, ☀️

कड़वा ही सही एक बार तो नशे में होकर पिया जाये। 🙈🌼🌷🌷

पानी फेर दो इन पन्नों पर ताकि धुल जाए स्याही सारी, 💐

ज़िन्दगी फिर से लिखने का मन होता है कभी-कभी। 🙌🌥🤐🌼