Guru Purnima 2025 : काशी में रचा अध्यात्मिक इतिहास, 151 मुस्लिम महिलाओं ...

आप गुरु पूर्णिमा 2025 पर काशी में हुए एक आध्यात्मिक कार्यक्रम का जिक्र कर रहे हैं, जहाँ 151 मुस्लिम महिलाओं ने भाग लिया और 'गुरु दीक्षा' ली। यह अंतर-धार्मिक सद्भाव और भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं के समावेशी स्वरूप को दर्शाता एक महत्वपूर्ण घटना है।

यहाँ उस घटना से जुड़ी मुख्य बातें दी गई हैं:


गुरु पूर्णिमा 2025: एक संक्षिप्त परिचय

  • गुरु पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो आध्यात्मिक और अकादमिक शिक्षकों (गुरुओं) के सम्मान में मनाया जाता है।

  • यह हिंदू कैलेंडर के आषाढ़ महीने की पहली पूर्णिमा को पड़ता है।

  • 2025 में, गुरु पूर्णिमा गुरुवार, 10 जुलाई को मनाई गई।

  • इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, जो महर्षि वेद व्यास की जयंती का प्रतीक है, जिन्हें वेदों को संकलित करने और महाभारत लिखने का श्रेय दिया जाता है।

  • 'गुरु' शब्द संस्कृत के शब्दों 'गु' (अंधेरा) और 'रु' (हटाने वाला) से बना है, जिसका अर्थ है वह जो अज्ञान के अंधकार को दूर करता है।

  • यह दिन हिंदुओं, जैनियों और बौद्धों द्वारा मनाया जाता है, जिनमें से प्रत्येक धर्म की अपनी विशिष्ट परंपराएं हैं। उदाहरण के लिए, बौद्ध धर्म में, यह वह दिन है जब बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।


काशी में रचा आध्यात्मिक इतिहास: 151 मुस्लिम महिलाओं का 'गुरु दीक्षा'

  • गुरु पूर्णिमा के अवसर पर काशी के पातालपुरी मठ के रामानंदी संप्रदाय में सद्भाव का एक उल्लेखनीय प्रदर्शन देखने को मिला।

  • 151 मुस्लिम महिलाओं और पुरुषों ने अनुष्ठानों में भाग लिया और औपचारिक रूप से 'गुरु दीक्षा' स्वीकार की, जो रामपंथ भक्ति परंपरा में एक आध्यात्मिक दीक्षा है।

  • इसे एक ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि यह पहली बार है जब इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम व्यक्तियों ने औपचारिक रूप से रामपंथ को अपनाया है, जो भगवान राम की पूजा में निहित है।

  • रिपोर्ट्स के अनुसार, मुस्लिम महिलाओं ने पातालपुरी मठ के प्रमुख जगद्गुरु बालक देवाचार्य जी महाराज की आरती की, जबकि मुस्लिम पुरुषों ने सम्मान व्यक्त किया।

  • भाग लेने वालों ने अपार खुशी व्यक्त की, कुछ ने कहा कि उनके पूर्वज रामपंथ के अनुयायी थे, और भले ही उनकी पूजा का तरीका बदल गया हो, उनकी पैतृक परंपरा, रक्त और संस्कृति वही है।

  • मुस्लिम महिला फाउंडेशन की प्रमुख नज़नीन अंसारी ने जोर दिया कि राम के सिद्धांतों का पालन करके वैश्विक शांति प्राप्त की जा सकती है और अज्ञान से ज्ञान की ओर मार्गदर्शन करने के लिए एक सच्चे गुरु का होना आवश्यक है।

  • आयोजकों ने बताया कि प्रतिभागियों ने स्वेच्छा से महीनों तक अध्ययन और आध्यात्मिक प्रशिक्षण लिया, और कोई बाहरी दबाव या आर्थिक प्रलोभन नहीं था।

इस घटना को भारत के समावेशी लोकाचार और युगों पुरानी गुरु-शिष्य परंपरा का प्रमाण माना जा रहा है, जो धार्मिक और जातिगत बाधाओं को पार करती है।